●●●●●●●●▬▬▬▬▬▬ஜ۩विधि-विधान۩ஜ▬▬▬▬▬●●●●●●●●●●
इस दिन शिवभक्त, शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाते, पूजन करते, उपवास करते तथा रात्रि को जागरण करते हैं। शिवलिंगपर बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।
इस दिन शिव की शादी हुई थी इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां ‘रात्रिज् शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञान सागर है जो मानव मात्र को सत्य ज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं।ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है।
विधि :- इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाया जाता है। अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है।
- रात्रि को जागरण करके शिवपुराण का पाठ सुनना हरेक व्रती का धर्म माना गया है।
- अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इसके करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपज जाता है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-
॥शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्। आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
विशेष :चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया हैं। शिव का अर्थ है कल्याण। शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। अब मन: कमÊाोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। जिससे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का अश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। अब मन: कमÊाोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। जिससे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का अश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।
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